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न्यूज़ और गॉसिप

हिंदी सिनेमा में भारतीय महिलाओं के जज़्बे को सलाम

महिला जज़्बे को सलाम करती हुई भारत की कुछ शानदार फ़िल्में

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8 मार्च 2019 दुनिया के लिए एक खास दिन माना जाता है। शायद आप को नहीं मालूम होगा हम याद दिलाना चाहेंगे कि इस दिन 8 मार्च को महिला दिवस मनाया जाता है। लेकिन सवाल यह है कि आखिर महिला दिवस मानाने की ज़रूरत ही क्यों पड़ी? क्या कारण था, क्या महिलाओं के नाम पर महिला दिवस मनाने पर महिलाओं को वास्तव में सम्मान मिल जाता है? जवाब तो यह होगा शायद नहीं। कारण यह है कि अब तक हमारा समाज अपनी तुच्छ विचाधाराओं से महिलाओं को अपमानित करता आ रहा है। अगर आज महिलाओं के प्रति हमारा समाज इतना ही सशक्त है तो महिला दिवस मानने की क्या ज़रूरत है ? भारत में आज़ादी के बाद से ही महिलाओं को किसी प्रोडक्ट (वस्तु ) की तरह माना जाता रहा है। भारत में कुछ ऐसे महान लोग थे जिनको बहुएं लाना तो बहुत पसंद था, लेकिन महिलाओं के प्रति उनकी सोच ज़ीरो के बराबर थी। यह पुराने दशक की बात नहीं, बल्कि अभी भी देश में कुछ ऐसे बुद्धिजीवी प्राणी हैं, जिनको महिलाओं से अभी भी बैर है। पता नहीं क्यों जब घर में लड़का पैदा होता है, तो शहनाइयां बजती है लेकिन अगर लड़की पैदा होती है तो मानों मातम सा पसर जाता है। यही कारण है कि महिलाओं के प्रति यह समस्या थमने का नाम नहीं ले रही है। आये दिन भारत में कन्या भ्रूण हत्याएं पनप रही हैं। कन्या भ्रूण हत्या, लड़कों को प्राथमिकता देने तथा कन्या जन्म से जुड़े निम्न मूल्य के कारण जान बूझकर की गई कन्या शिशु की हत्या होती है। ये प्रथाएं उन क्षेत्रों में होती हैं जहां सांस्कृतिक मूल्य लड़के को कन्या की तुलना में अधिक महत्व देते हैं।

यूनीसेफ (UNICEF) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में सुनियोजित लिंग-भेद के कारण भारत की जनसंख्या से लगभग 5 करोड़ लड़कियां एवं महिलाएं गायब हैं। दुनिया के अधिकतर देशो में 100 प्रति पुरुषों में 105 स्त्रियों का जन्म होता होता है। भारत की जनसंख्या में प्रति 100 पुरुषों के पीछे 93 से कम स्त्रियां हैं। संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि भारत में अवैध रूप से अनुमानित तौर पर प्रतिदिन 2,000 अजन्मी कन्याओं का गर्भपात किया जाता है। इस विषय पर संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि भारत में बढ़ती कन्या भ्रूण हत्या, जनसंख्या से जुड़े संकट उत्पन्न कर रहा है। ऐसे में भारत को महिलाओं के प्रति इतना सशक्त कैसे माना जा सकता है। यह तो कहना बुरा नहीं होगा कि भारत की 133 करोड़ की आवादी में लगभग 75 प्रतिशत लोग गावों में रहते हैं और कन्या भ्रूड़ हत्या की अधिकतर घटनाये ऐसे ही जगहों से देखने को मिलती हैं। भारत के कुछ प्रशिद्ध राज्यों पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और गुजरात में लिंगानुपात सबसे कम है। 2001 की जनगणना के अनुसार 1000 बालकों पर बालिकाओं की संख्या पंजाब में 798, हरियाणा में 819 और गुजरात में 883 है। कुछ अन्य राज्यों ने इसे गंभीरता से लिया और इसे रोकने के लिए अनेक कदम उठाए जैसे गुजरात में डीकरी बचाओ अभियान चलाया जा रहा है। इसी प्रकार से अन्य राज्यों में भी योजनाएँ चलाई जा रही हैं लेकिन अब इस स्थिति में बदलाव देखा जा रहा है और अब स्त्रियों के प्रति लोगों की चाहत और जागरुकताएँ बढ़ती जा रही हैं और अब इनकी संख्या में धीरे-धीरे इज़ाफ़ा देखा जा रहा है । सोचनेँ की बात यह है कि क्या अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवश मानाने पर यह आकड़े काम हो जयेंगे ? शायद नहीं लेकिन आज हमारे कुछ बुद्धिमान समज़ को यह जानने की ज़रूरत है कि “हमारी चोरियाँ छोरों से काम हैं के” आज ऐसे समाज जो महिलाओं के प्रति ऐसी विचारधारा रखते है उनकों भारतीय फिल्मों को देख प्रेरणा लेने की ज़रूरत है। सोंचो लता मंगेशकर के गानें आज दुनिया में शुमार है, मेरी कॉम, गीता और बबिता फोगाट जैसी महान लड़कियाँ जिन्होंने भारत का नाम रौसन किया है। वहीँ महिलाओँ के प्रति तुक्ष मानसिकताएँ रखने वालों के गाल पर तमाचे के बराबर होता है।

महिलाओं के प्रति भारत की मानसिकताएं क्यों इतने पीछे है ? फिल्मीं दुनिया से लेकर खेल के मैदान तक आज भारतीय लड़कियों का डंका बजता है , देश हो या विदेशी सरज़मीं आज हमनें लड़कियां लोगों पर भारी पद रहीं है। फिल्मों की बात करे तो आज लोग उनके अभिनय के आयल हैं। एक बात कहना वाज़िब है कि यह कायलता बीस चंद लम्हों ताकि ही सीमित रहता है। प्रधानमंत्री बनाने के बाद मोदी जी ने “बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ”आंदोलन शुरुआत की थी काफी हद तक वह लोगों के बीच अपना असर छोड़ा है। वहीँ इस दौर में भारतीय फ़िल्में जिसमें महलाओं की मुख्य भूमिकाएं यह दरसाती हैं कि आज हमारी महिलाएं सब कुछ कर सकती हैं। छोडो लड़का और लड़की में अंतर लेकिन यह किसी की समझ तक नहीं आता है। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र के तबके का ताल ठोकने वाला भारत दुनिया के ऐसे देशों में शुमार है जहाँ पर औरतों को सम्मान तो दिया जाता है लेकिन उन्हे एक प्रोडक्ट (वस्तु) की नज़रिये से देखा जाता है।1947 में भारत अंग्रेज़ों से तो आज़ाद हो गया लेकिन सवाल यह है कि क्या भारत के लोग लिंग भेद से आज़ाद हुए ? महिला सम्मान की बात तो करते हैं क्या हमारे भीतर महिलाओं के प्रति सम्मान है? यह कहना गलत होगा कि लोगों को महिलाओं के प्रति सम्मान नहीं है। भारत की नयी पीढ़ि है जो आज महिलाओं को सम्मान दे रही हैं। लेकिन जिस तरह से भारत का लिंगानुपात खता है हमें इससे निजात पाने की ज़रूरत है।
हम अपने समाज और लोगों के प्रति प्रतिबद्धता दिखने की ज़रूरत है, कि फ़िल्में हमरे समाज से ही ली जाती है जहाँ पर हम रहते है और ऐसे ही फिल्मों से हम प्रेरित भी होते हैं। लेकिन हम उसी समाज में लड़कियों के छोटे कपड़ो पर सवाल कर बैठते हैं और उनकों भला-बुरा तक कह देते है। ऐसा कई बार होता है जब कुछ ज्ञानी पंडित लोग अपने ज्ञान का कटोरा लेकर सामने आ जाते हैं। जहाँ भारतीय फिल्मों की दुर्लभता की बात है तो यह फिल्मों पर नहीं है। यह हकीकत है कि फ़िल्में आज हमारे समाज की बुरी प्रबृतियों को दिखा रहा है और सचेत करने इसी बीच हम कुछ ऐसे फिल्मों से आप को रूबरू कराते हैं जो बुरी प्रबृति रखनें वालों के गाल पर तमाचे के बराबर है। 8 मार्च महिला दिवस के अवसर पर बॉलीवुड की 8 धाकड़ फ़िल्में और उनके डायलॉग जो दिल छू जायेंगें।

1.चक दे इंडिया—संपूर्ण महिला हॉकी टीम
यह एक ऐसी फिल्म थी जिसमें सम्पूर्ण रूप से महिलाएं होती हैं जो खुद और खुद के मुल्क का नाम रौशन करती दिक्ति है। ऐसा माना जाता है की यह एक ऐसी फिल्म थी जो दूसरी फिल्मों से इतर थी यह फिल्म क्रिकेट नहीं बल्कि हॉकी पर आधारित थी। इस फिल्म में महिलाओं के प्रति कुछ तुक्ष प्रबृति रखनें वालों को भी दिखाया गया है। यह तब होता है जब महिला हॉकी टीम को पुरुषों के साथ भिड़ाया जाता है लेकिन वहाँ पर लडकियों को इसका जवाब दते दिखाया गया है।

फिल्म का प्रसिद्ध डायलॉग:

  • सत्तर मिनट, सत्तर मिनट है आप के पास ज़िंदगी से सबसे खास सत्तर मिनट आज तुम अच्छा खेलो या बुरा ये सत्तर मीनट तुम्हें ज़िंदगी भर याद रहेगें। तो कैसे खेलना है आज मई तुम्हें नहीं बताऊंगा बस इतना ही कहूँगा जा ये सत्तर मिनट ज़ी भर कर खेलों, लेकिन इसके बाद आनेवाली ज़िंदगी चाहे कुछ रहे या ना रहे तुम हारो या जीतो लेकिन ये सत्तर मिनट तुमसे कोई नहीं छीन सकता है। तो इस मैच कैसे खेलना है मैं आज नहीं बताउगा तुम्हें बल्कि तुम मुझे बताओगे खेल कर, क्यों कि मैं जनता हूँ अगर इस टीम का हर प्लेयर अपनी ज़िंदगी की सबसे बढ़िया हॉकी खेल गया तो ये सत्तर मिनट खुदा भी तुमसे नहीं चीन सकता है। तो जाओं अपने आप से इस ज़िंदगी से अपने खुदा से और हर एक उस इनसान से जिसने तुम पर भरोसा नहीं किया अपने सत्तर मिनट छीन लो !

यह डायलॉग लोगों में काफी पसंद किया गया है। आज भी ऐसे प्रेरणादायी डायलॉग तुक्ष मानसिकता वालों पर काफी शूट करता है।

2. पिंक:
अनिरुद्ध रॉय चौधरी के निर्देशन में बनी यह फिल्म महिलाओं के प्रति बुरी सोच रखनें वालों के एक सबक के तौर पर था। इस फिल्म की मुख्य भूमिका में अमिताभ बच्चन और तापसी पन्नू को देखा गया था। यह फिल्म महिलाओं प्रति समाज में बुरी सोंच को दिखता हैं। इस फिल्म में छेड़खानी किये जाने पर मीनल अपने दोस्तों के साथ एक राजनेता के भतीजे के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने की कोशिश करती है। जब मामला बिगड़ जाता है, तब सेवानिवृत्त वकील, दीपक मुकदमा लड़ने में उनकी मदद करते हैं।

फिल्म का प्रसिद्ध डायलॉग: 

  • हमारे यहाँ छड़ी की सुई कैरेक्टर डिसाइड करती हैं।
  • ना बस एक शब्द नहीं अपने आप में पूरा वाक्या है ना का मतलब नहीं होता है। नो का मतलब नो होता है उसे बोलने वाली कड़की कोई परचित हो या कोई फ्रेंडहों,गर्ल फ्रेंड हो, कोई सेक्स वर्कर हो या आप की अपनी बीवी ही क्यों न हो नो मीन्स नो।

3. राज़ी:
फिल्म राज़ी आलिया भट्ट की सभी फिल्मों में से एक थी जिसमें आलिया ने देश के लिया एक जासूस की भूमिका में थीं। यह फिल्म हरिंदर एस सिक्का की लिखी किताब कॉलिंग शहमत’ पर आधारित है। इस फिल्म में आलिया ने शहमत नाम की एक लड़की की भूमिका में नज़र आती हैं। एक रॉ गुप्तचर, सहमत खान के पिता उसकी शादी पाकिस्तानी परिवार में करते हैं ताकि वह दुश्मन के बारे में मूल्यवान जानकारी प्राप्त कर सके। भारत की खूफिया जासूस बनी आलिया ने इस फिल्म से दर्शय कि अगर एक पुरुष देश के लिया अपनी जान हथेली पर रख सकता है तो एक लड़की भी ऐसा कर सकती है।

फिल्म का प्रसिद्ध डायलॉग:

  • वो आसमान देख रहे होगें और हम उनके पाँव तले से ज़मीन खींच लेंगे।
  • मैं चाहता हूँ तू हिंदुस्तान की आँख और कान बन कर उनके पाकिस्तान में रहों।
  • वतन के आगे कुछ भी नहीं, खुद भी नहीं।
  • मैं तो अब वहीँ की हूँ जहाँ मेरे घर वाले हैं।

4. दंगल:
महावीर फोगाट देश के लिए स्वर्ण पदक जीतने में असफल होने के बाद, सामाजिक दबाव के बावजूद कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए अपनी बेटियों को प्रशिक्षण देकर अपने सपने को साकार करने की शपथ लेते है। नितेश तिवारी के निर्देशन और आमिर खान के अभिनय वाली यह फिल्म खूब नाम बटोरी है। यह फिल्म दर्शाती है कि आज हमारी लड़कियां किसी लड़के से काम नहीं है। यह फिल्म हरियाणा की गीता और बबिता और उनके पिता महावीर फोगाट पर आधारित हैं।


फिल्म का प्रसिद्ध डायलॉग:

  • गोल्ड तो गोल्ड होता है वो छोरा लावे या छोरी!
  • अगर सिल्वर जीती तो आज नहीं तो कल लोग तन्ने भूल जावेंगे अगर गोल्ड लायी तो मिसाल बन जावेगी और मिसालें दी जाती हैं बेटा भूली नहीं जाती।
  • म्हारी छोरियाँ छोरों से कम हैं के।

5. निल बट्टे सन्नाटा:
निल बट्टे सन्नाटा, जिसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर द न्यू क्लासमेट के नाम से जारी किया गया था, अश्विनी अय्यर तिवारी द्वारा निर्देशित २०१५ की एक भारतीय कॉमेडी-ड्रामा फिल्म है। कलर येलो प्रोडक्शंस और एआर पिक्चर्स के बैनर तले आनंद एल राय, अजय राय और एलन मैकएलेक्स द्वारा निर्मित इस फिल्म को अय्यर, नीरज सिंह, प्रांजल चौधरी और नितेश तवारी ने लिखा है। फ़िल्म में स्वरा भास्कर ने चंदा सहाय नामक एक हाई-स्कूल ड्रॉप-आउट घरेलू नौकरानी की भूमिका निभाई, जो अपेक्षा (रिया शुक्ला द्वारा अभिनीत) नामक एक सुस्त युवा लड़की की एकल माँ थी। फिल्म सामाजिक प्रतिष्ठा के निरपेक्ष किसी व्यक्ति का सपने देखने और अपने जीवन को बदलने के अधिकार के विषय पर आधारित है।


फिल्म का प्रसिद्ध डायलॉग:

  • बुराई फेल होनें में नहीं, बुराई है तो जो दीमाग करे हार मान लेने में।
  • तेरा सपना न सिर्फ और सिर्फ तेरा है, ज्यादातर लोग सपने पर हसेंगे, उन्हें न भाड़ जाने को कहियो, बहुत कम लोग होंगे जो तुम्हारे सपने को समझेंगे उन्हें गले लगा कर रखियो, ये तुम्हारा सपना ज़िंदा रखेंगे।
  • तेरे रास्ते में दिक्क़ते और मुस्किले भी आएगी, अगर तेरे सामने तेरा सपना है ना तो कोई दिक्क्त हो ज्यादा देर टिक नहीं पाएगी।

6. मर्दानी:
किशोर उम्र की लड़की,प्यारी को बचाते हुए मुंबई पुलिस की अपराध शाखा के साथ काम कर रही एक महिला पुलिस, शिवानी शिवाजी रॉय बच्चों के अवैध व्यापार के गोरख धंधे का खुलासा करती है।
अपराधी को फिल्म में बेहद चालाक बताया गया है। वह अपनी किसी से भी सीधे तौर पर संवाद नहीं करता, लेकिन रानी को हमेशा फोन लगाता है। उसे धमकाता और चैलेंज देता है। ये बात उसके किरदार से मेल नहीं खाती। चाइल्ड सेक्स के अवैध व्यापार वाला मुद्दा भी फिल्म के बीच में पीछे रह जाता है और चोर-पुलिस का खेल उस पर हावी हो जाता है।

फिल्म का प्रसिद्ध डायलॉग:

  • ये इंडिया है यहाँ ऐसे फैसले लिया जाते हैं। लोग इसे एनकाउंटर कहते हैं, कुछ खर्चा पानी और कुछ लोकपाल बिल भी बोलते हैं।

7. नीरजा :
1986 में एक विमान परिचारिका, नीरजा पैन एम फ्लाइट 73 में सवार होती है। जब आतंकवादियों द्वारा विमान का अपहरण किया जाता है, नीरजा, आतंकवादियों को यात्रियों पर हमला करने से रोकने की कोशिश करती है। आतंवादियों की योजना के अनुसार वो प्लेन को साइप्रस ले जाना था और वहां जेल में कैद उनके साथी को छुड़वाना था, नीरजा किस तरह बहादुरी से यात्रियों की जान बचाती है, यह दिखाया गया है। नीरजा अपने साहस और समझदारी से आतंकवादियों के सामने लोगों को समय-समय पर खाना पीना भी देती रहती हैं। नीरजा अपनी हिम्मत से ना केवल आतंवादियों की योजना को नाकाम करती हैं, बल्कि 359 लोगों की जान भी बचाती हैं।

8. मेरी कॉम:
तमाम बाधाओं के बीच मेरी कॉम विश्व चैम्पियन बनती हैं इसके बाद उनकी शादी हो जाती है और शादी के बाद दो बच्चों की हैं। माना कि भारत में क्रिकेट से अधिक पैसा कहीं नहीं है यही कारण है की लोग क्रिकेट के प्रति अपना ध्यान आदिक केंद्रित करते हैं। मेरी कॉम एक नहीं बल्कि तीन बार विश्व विजेता बनती हैं। मेरी कोम बॉक्सिंग जिम में प्रसिद्ध कोचसे मिलती है और उनके साथ अपनी मुक्केबाजी की आकांक्षा साझा करती है और सिखाने के लिए उन्हें मनाती हैं। अपने पिता की अस्वीकृति के बावजूद वह अपना जुनून कायम रखती है।

फिल्म का प्रसिद्ध डायलॉग:

  • दुनिया बॉक्सर मेरी कॉम को भूल गया है, क्या मेरी कॉम बॉक्सिंग भूल गया है।
  • एक औरत माँ बन कर बाहर स्ट्रांग हो जता है और अब तुम्हारा ताकत दोगुना बढ़ जाता हैं।

8 मार्च अंतरराष्ट्रीय महिला दिवश हम क्यों मनातें है ? क्या महिलाओं को सांत्वना देने के लिए या वास्तव में उनको आगे बढ़ाने के लिए। आज दुनियां भर में महिलाएं क्या नहीं कर रहीं है ? हमें महिलाओं और उनके किये महान कार्यों को देख उन्हे सलाम करना चाइये। माना कि ऐसी फ़िल्में जो हमें और हमारे समाज को एक प्रेरणा देने का काम कर रही है पर हमे ऐसा देख कर उसे एक कहनीं की तरह भूल नहीं जाना चाइये। आइये इस महिला दिवश पर हम प्रण करें कि महिलाओं के प्रति भेदभाव और उनके प्रति गलत मानसिकता से दूर जाये दूर जाकर कुछ अच्छा सोचें और अच्छा करें। महिलाएं बोझ नहीं है हमारी और हमारे देश की सान हैं।

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