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बॉम्बे हाईकोर्ट के ऐतिहासिक फैसले को अरशद वारसी का सलाम
अगर यह बात सही है, तो एक लंबे समय के बाद एक बेहतर कानून पास हुआ -अरशद वारसी

Published
4 years agoon
By
सुनील यादव
भारत देश में अदालत के निर्णयों पर अक्सर सवालिया निशान उठते रहे हैं। हालाँकि उम्मीदें कभी नहीं मरती, जनता की आँखें अदालत के फैसले पर आज भी टिकी रहती हैं। अदालती फैसले किसी की ऑंखें नम कर जाते हैं, तो किसी के होंठों पर मुस्कान बिखेर जाते हैं। मुंबई उच्च न्यायालय का एक ऐसा ही फैसला सामने आया है, जिसकी हर कोई तारीफें करते नहीं थक रहा है। यह फैसला बुजुर्गों के सम्मान और उनके हक़ में सुनाया गया है। इस फैसले पर बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता अरशद वारसी ने भी मुंबई उच्च न्यायालय को सलाम ठोंका है।
दरअसल मुंबई उच्च न्यायालय के दो जजों ने एक बुजुर्ग के पक्ष में अहम फैसला सुनाया है। मामला अँधेरी में रहने वाले एक बुजुर्ग व्यक्ति का है, जिन्हे उनके बेटे और बहू ने उन्ही के घर से बेदखल कर दिया। घर से बेदखल होने के बाद बुजुर्ग व्यक्ति ने अदालत का दरवाजा खटखटाया, जहाँ उनकी बात न केवल सुनी गई, बल्कि सच्चाई और इंसानियत के हक़ में फैसला भी सुनाया गया। बेटे के नाम पर लिखी गई जायदात को पुन: उस बुजुर्ग व्यक्ति को लौटाया गया। कोर्ट ने अपने स्टेटमेंट में कहा, “बेटे और बहू के कहने पर बुजुर्ग व्यक्ति ने अँधेरी स्थित अपने फ़्लैट का 50 प्रतिशत शेयर अपने बेटे के नाम पर कर दिया था। लेकिन प्रॉपर्टी नाम पर लिखे जाने के बाद बुजुर्ग व्यक्ति और उसकी दूसरी पत्नी को मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाने लगा, जिसके चलते बुजुर्ग व्यक्ति ने एक याचिका दाखिल की, जिसमें गिफ्ट वापस लेने की मांग की गई और हमें इस गिफ्ट को कैंसिल करने में कुछ गलत नहीं लगा।”
क्या कहता है कानून
वर्तमान परिस्थिति में बुजुर्गों को विभिन्न प्रकार की आधारभूत समस्याओं का सामना करना पड़ता है। संतान होने के बाद भी बुजुर्गों को बेसहारा सड़कों पर छोड़ दिया जाना किसी संगीन अपराध से कम नहीं है। इस प्रकार के मामले को बढ़ता देख भारत सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 41 का पालन करते हुए वर्ष 2007 में माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिकों के लिए भरण-पोषण एवं कल्याण अधिनियम कानून बनाया। इस कानून के तहत अगर माता-पिता अपनी जायदात अपने बच्चे या किसी रिश्तेदार को भेंट स्वरुप उसके नाम करते हैं, तो उस व्यक्ति की यह जिम्मेदारी है कि वह उन बुजुर्गों का पूरा ख्याल रखे। इस कानून के कुछअहम पहलुओं पर एक नज़र:
– 60 वर्ष या उससे अधिक आयु के नागरिक इस भरण-पोषण अधिनियम के हक़दार हैं।
– वरिष्ठ नागरिकों के लिए यह स्पेशल अधिनियम 10,000 रुपये तक की मेंटेनेंस मुहैया करवाता है।
– बच्चे द्वारा बुजुर्ग माता-पिता का ख्याल न रखना एक क़ानूनी अपराध है।
– अगर जिम्मेदार व्यक्ति बुजुर्ग का ख्याल नहीं रखते हैं, और वह दोषी पाया जाता है, तो उसे 3 महीनों की जेल हो सकती है और मुआवजा भी देना पड़ सकता है।
-निसंतान माता-पिता भी इस अधिनयम के तहत अपने किसी रिस्तेदार या खास व्यक्ति से मेंटेनेंस की मांग कर सकते हैं, जो कि आगे चलकर उनकी जायदात का वारिस होगा।
क्या है पूरा मामला
दरअसल यह मामला मुंबई के अँधेरी स्थित एक बुजुर्ग निवासी का है, जिनकी पत्नी का देहांत वर्ष 2014 में हुआ था। जब पिछले साल उन्होंने फिर से शादी का मन बनाया तो, उनकी बेटे और बहू ने प्रॉपर्टी की मांग की। बुजुर्ग व्यक्ति से अँधेरी स्थित उनके फ्लैट में कुछ शेयर की मांग की गई। पारिवारिक जद्द्दोजहद में उलझे बुजुर्ग व्यक्ति ने शांति के लिए अँधेरी स्थित फ़्लैट का 50 प्रतिशत शेयर अपने बेटे के नाम पर कर दिया। हालाँकि इसके बावजूद बेटे और बहू ने बुजुर्ग व्यक्ति और उसकी दूसरी पत्नी को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। उन्हें जबरन अँधेरी फ़्लैट से बेदखल कर दिया गया। अपनों से हारे बाप ने उसके बाद मेंटेनेंस ट्रिब्यूनल में मदद की गुहार लगाई, जिसके बाद कोर्ट ने उनके दिए गिफ्ट को कैंसिल कर दिया। पिता की याचिका को बेटे ने चुनौती दी, लेकिन बेटे की याचिका को कोर्ट ने सिरे से खारिज कर दिया।
प्राचीन भारत के गुरुकुलों व् विद्यालयों में मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, जैसे मन्त्रों का जाप का उच्चारण किया और करवाया जाता था। हालाँकि पाश्चात्य संस्कृति के तेजी से प्रभाव में आने और शहरीकरण के चलते ये चीजें जेहन से मिटती जा रही हैं। जिसके चलते परिवार में, समाज में, लोगों के बीच बड़े-छोटे की आदर्शता के निशाँ धूमिल हो चुके हैं। बच्चों द्वारा बुजुर्गों का अपमान आज आम बात हो गई है। 2001 की जनगणना के अनुसार, भारत में बुजुर्गों की संख्या 7.7 करोड़ थी, जो कि 2026 में 12.4 करोड़ होने की परिकल्पना है। हालाँकि बुजुर्गों को बेघर कर बेसहारा छोड़ने के वाकये बेहद हैं। इस समस्या पर भले ही कानून बनाया गया, लेकिन इस समस्या में कोई कमी नहीं आई। आज भी बुजुर्गों को बेघर कर सड़कों पर छोड़ दिया जा रहा है। आखिर गरीब और निरक्षर व्यक्ति अपना हक़ कहाँ मांगे। मुंबई उच्चन्यायालय के इस निणर्य ने ऐसे हज़ारों बुजुर्गों की आँखों में उम्मीद की किरण ज़रूर जगाई है।
मुंबई उच्चन्यायालय के इस फैसले की हर ओर सराहना की जा रही है। देशभर के लोग इस बाबत पर सोशल मीडिया पर अपने विचार प्रकट कर रहे हैं। बॉलीवुड भी इस फेहरिस्त में शामिल हो चुका है, यह ख़ुशी की बात है। जब लोग मिलकर बोलेंगे, आवाज़ तभी उठेगी। बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता अरसद वारसी ने मुंबई उच्चन्यायालय के इस फैसले को सोशल मीडिया पर शेयर करते हुए सराहना की है। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा, “अगर यह बात सही है, तो एक लंबे समय के बाद एक बेहतर कानून पास हुआ।”