इंटरव्यू
बैठ कर रोने से बेहतर है कोशिश कर आगे बढ़ना -सैयमी खेर
Published
6 years agoon
By
सुनील यादवThis article is also available in: English (English)
सैयमी खेर की डेब्यू फिल्म “मिर्ज्या” भले ही बॉक्स ऑफिस पर कुछ खास करने में असफल रही, लेकिन सैयमी एक प्रतिभाशाली अभिनेत्री हैं और वह अपनी जगह बना रही हैं। मराठी फिल्म “माउली” में अपने शानदार अभिनय के बलबूते पर उन्होंने हिंदी फिल्म जगत पर अपनी छाप छोड़ दी है। सिनेब्लिट्ज़ को दिए साक्षात्कार में सैयमी ने अपने फ़िल्मी सफ़र के उतार-चढ़ाव और फिल्मों में मिले कम मौकों से सम्बन्धित वाकयों पर खुलकर बात की।
मिर्ज्या से माउली तक आते-आते 2 साल लग गए। इस दौरान आपको बॉलीवुड में वापसी के लिए क्या-क्या करना पड़ा?
मिर्ज्या के रिलीज़ होने से एक दिन पहले मेरे पास कई फिल्मों के ऑफर आ चुके थे, लेकिन फिल्म के नहीं चलने पर वह ऑफर्स भी चले गए। एक बार जब आपकी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कारोबार नहीं कर पाती है, तो आपके लिए आगे की राह मुश्किल हो जाती है। फिल्म फ्लॉप होने के बाद स्ट्रगल शुरू हुआ। मिर्ज्या के बाद भी मुझे काफी फिल्म ऑफर हुई, लेकिन वह मेरे करने लायक नहीं थी। इसलिए मैं एक बेहतर मौके का इन्तेजार कर रही थी। मैंने मनी रत्नम के साथ एक साउथ फिल्म साइन की थी, जिसमें मैंने बहुत हार्ड वर्क भी किया, लेकिन उसका कुछ ख़ास नतीजा नहीं निकल सका। इसके बाद मुझे दो मराठी फिल्म ऑफर की गई, लेकिन उसमें मुझे वेस्टर्न गर्ल की भूमिका निभाने के लिए कहा गया। मुझे ऐसी फिल्म चाहिए थी, जिसमें मेरा किरदार अच्छा हो। माउली में मेरा किरदार एक भारतीय नारी का था, जो कि मुझे बहुत भाया। मुझे गर्व महसूस होता है कि फिल्म के प्रोडूसर और एक्टर रितेश देशमुख ने इस फिल्म में मुझे मौका दिया। माउली एक बड़ी फिल्म थी और रितेश की लय भारी के बाद दूसरी हिट फिल्म थी। इस फिल्म में अजय-अतुल ने संगीत दिया था और आदित्य सरपोतदार इस फिल्म के निर्देशक थे। इसलिए फिल्म को ना कहने का मेरे पास कोई कारण नहीं था।
आपने कहा कि सही फिल्म चुनने के लिए आपने समय लिया। आपने कैसे चुना? क्या आपको अच्छी स्क्रिप्ट नहीं मिल रही थी?
नहीं, अच्छी स्क्रिप्ट की कमी नहीं थी। पिछली कुछ फिल्मों को देखा जाए, तो कंटेंट बधाई हो और अन्धाधुन जैसे आ रहे थे। इस दौरान कुछ अच्छी स्क्रिप्ट्स आती हैं, तो फिर उसपर तैयारियां शुरू हो जाती हैं। सबसे पहले किसी फिल्म के लिए 15 ए-लिस्ट अभिनेत्रियों में से किसी एक को चुनने की कोशिश की जाती है, अगर उनमें से नहीं मिली, तो फिर बी-लिस्ट की ओर ध्यान दिया जाता है। अगर वहां से भी बात नहीं बनी, तो फिर निर्देशक किसी फिल्म स्टार के बच्चे को लॉन्च करने की सोचते हैं। अगर किसी स्टार चेहरे को नहीं, तो फिर किसी फ्रेश चेहरे को लॉन्च कर दिया जाता है। लेकिन कोई प्रोडूसर ऐसे अभिनेत्री को नहीं लेगा, जिसकी पहली फिल्म फ्लॉप हुई हो। हालाँकि आप हाथ पर हाथ धरे बैठ नहीं सकते, आपको आगे बढ़ना होगा। ऐसी स्क्रिप्ट चुनना मुश्किल होता है, जिसपर आप काम करना चाहते हो। मैं अन्धाधुन का हिस्सा बनना चाहती थी, लेकिन किसी कारणवश ऐसा हो नहीं पाया। मुझे इस दौरान कुछ सेक्स कॉमेडी फ़िल्में भी ऑफर की गई, लेकिन वह मैं नहीं करना चाहती थी। इसके बजाय मैं थिएटर क्लास और वर्कशॉप करने लगी। अच्छी स्क्रिप्ट की कमी नहीं थी, बस अच्छे मौके की कमी थी। ऐसे कई लोग हैं जो ऐसा ही सोचते हैं।
आप पारिवारिक भी हो, इसलिए यह सब आपके लिए उतना आसान नहीं हुआ होगा, इसपर आप क्या सोचती हैं?
हम नाशिक में एक छोटे से गाँव में रहते हैं। जहाँ मेरे माता-पिता ने मेरी बहन और मुझे लाया था, क्योंकि वह चाहते थे कि हम फ़िल्मी दुनिया से दूर रह सके। वह बॉलीवुड के बारे में बेहद गलत सोचते थे। लेकिन जिन्दगी ने पलटवार किया और मैं बॉलीवुड में आ गई। मेरा फ़िल्मी कनेक्शन जुड़ा, क्योंकि मेरी आंटी तन्वी आज़मी इस इंडस्ट्री में पहले से थीं। अगर मराठी फिल्म इंडस्ट्री में आने की बात की जाये, तो यहाँ मेरी दादी उषा किरण का बहुत नाम रहा है। यहाँ नाम को लेकर कोई तनाव नहीं था। उनके नक़्शे कदम पर चलते हुए मुझे यह आभास हुआ कि अभी सफर बहुत लम्बा है। इसके बाद मैंने आगे बढने के लिए कुछ ब्रांड्स के लिए ऑडिशन दिए।
आप डिजिटल स्पेस का भी हिस्सा बनने जा रही हैं, जो कि आप को और ऊँचाइयों पर ले जाएगा। आपका ओटीटी के बारे में क्या ख्याल है, क्या आप भी इसे फोलो करती हैं?
मैंने कुछ डिजिटल शो देखना शुरू किया है। हालाँकि मैंने कुछ शो को लेट देखना शुरू किया है। मैंने नार्कोस, ब्रेकिंग बैड और स्केयर्ड गेम्स देखा है, जिसके कंटेंट मुझे मजेदार लगे। वेब सीरीज और ओटीटी के बारे में मेरा मानना है कि यहाँ लोगों को यह चुनने की आजादी होती है कि वह क्या देखें और क्या नहीं। हम कभी भी कहीं भी किसी भी शो को देख सकते हैं, शायद इसलिए यह अच्छा भी है। पिछले दो सालों में यह उभर कर सामने आया है। हर कोई अब इसके साथ जाना चाहता है। आंकड़ों को देखा जाए, तो भारत में नेटफ्लिक्स को यूज करने वालों की संख्या केवल 2 प्रतिशत है। अगर रिच कैटेगरी को छोड़ दिया जाए, तो लोअर केटेगरी तक पहुँचने के लिए इसे काफी समय लग सकता है। अंगद बेदी मेरे बहुत अच्छे मित्र हैं और वेब पर कितने शो करते रहते हैं। उन्होंने कहा था कि वेब पर कई ऐसे कंटेंट आ रहे हैं, जिसे करना आसान नहीं है।
बॉलीवुड इंडस्ट्री में ऐसे कौन लोग हैं, जिससे आप एडवाइस लेती हैं?
राकेश(ओम प्रकाश मेहरा) सर। पिछले 3 सालों से वह मेरे लिए एक पारिवारिक सदस्य के रूप में हैं। उन्हें हम न केवल व्यवहारिक तौर पर, बल्कि मेंटर के तौर पर भी देखते हैं। जब भी मुझे कोई फिल्म या कुछ और ऑफर किया जाता है, तो मैं उनसे ज़रूर फीडबैक लेती हूँ। उनके विचार मेरे लिए बहुत मायने रखते हैं।
क्या बॉलीवुड में पैर ज़माने के लिए एक गॉडफादर की ज़रूरत होती है?
बॉलीवुड इंडस्ट्री में कुछ लोग इसप्रकार से ऊपर जरूर उठे हैं। यह इंडस्ट्री में पैर ज़माने का एक तरीका ज़रूर है, लेकिन यहाँ ऐसे भी कुछ लोग हैं, जो खुद की मेहनत से उभरकर सामने आये हैं और अपना नाम बनाया है। आप आयुष्मान खुराना और विकी कौशल को इसके उदाहरण के तौर पर देख सकते हैं।
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